ये प्रणय निवेदन बहुत हुए अब,
अंतस में ज्वाला उठती है|
आर्य रक्त की 'अनल' ह्रदय में,
बारम्बार धधकती है|
वर्तमान इतिहास को पढ़कर,
ये दिखा रहा मैं हूँ उदार|
पुष्यमित्र, परशुराम का चोगा,
बोलो कैसे मैं दूं उतार|
अंतस में ज्वाला उठती है|
आर्य रक्त की 'अनल' ह्रदय में,
बारम्बार धधकती है|
वर्तमान इतिहास को पढ़कर,
ये दिखा रहा मैं हूँ उदार|
पुष्यमित्र, परशुराम का चोगा,
बोलो कैसे मैं दूं उतार|
जिस समय रेनेसाँ की आग
यवन में धधकी थी|
दर्शन की जाने कितनी पुस्तक,
हमने जा हिन्द में पटकीं थी|
जाओ जाकर पूछो तुम,
दजला-फ़रात उन नदियों से|
सिन्धु पार कर कोई निवासी,
आया है क्या सदियों से|
मूसा आये, ईसा आये,
दाऊद और मोहम्मद आये|
प्रश्नचिन्ह उनके वजूद पर,
आर्यों ने क्या कभी लगाये|
कर दिया धर्म का स्वरुप विकृत,
समाज के ठेकेदारों ने|
तेल डालकर आग लगाई ,
दिल्ली के सियासतदारों ने|
मैकाले की शिक्षा ने इतिहास
है कुचला बुरी तरह|
विडंबना है भारत की इसने
स्वीकारा उसी तरह|
~ललित किशोर गौतम
यवन में धधकी थी|
दर्शन की जाने कितनी पुस्तक,
हमने जा हिन्द में पटकीं थी|
जाओ जाकर पूछो तुम,
दजला-फ़रात उन नदियों से|
सिन्धु पार कर कोई निवासी,
आया है क्या सदियों से|
मूसा आये, ईसा आये,
दाऊद और मोहम्मद आये|
प्रश्नचिन्ह उनके वजूद पर,
आर्यों ने क्या कभी लगाये|
कर दिया धर्म का स्वरुप विकृत,
समाज के ठेकेदारों ने|
तेल डालकर आग लगाई ,
दिल्ली के सियासतदारों ने|
मैकाले की शिक्षा ने इतिहास
है कुचला बुरी तरह|
विडंबना है भारत की इसने
स्वीकारा उसी तरह|
~ललित किशोर गौतम