बात बात में झगडा होता|
न होती रंजिश अच्छा होता|
भरी किताबें कमरा होता,
और नहीं दरवाज़ा होता|
गर बाबा मेरे ज़िन्दा होते,
मीर जैसा लहज़ा होता|
इन्द्रधनुष भी सध जाता,
न होती रंजिश अच्छा होता|
भरी किताबें कमरा होता,
और नहीं दरवाज़ा होता|
गर बाबा मेरे ज़िन्दा होते,
मीर जैसा लहज़ा होता|
इन्द्रधनुष भी सध जाता,
सूरज थोड़ा ठहरा होता|
हुनर दिखाने को अपना,
पानी ये नाकाफ़ी है,
उंगली दांतों तले दबाते तुम,
बस ये दरया थोडा गहरा होता|
~ललित किशोर गौतम
हुनर दिखाने को अपना,
पानी ये नाकाफ़ी है,
उंगली दांतों तले दबाते तुम,
बस ये दरया थोडा गहरा होता|
~ललित किशोर गौतम
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