बदलूँ नहीं पर बदलने की आरज़ू तो है|
भले ठंडा पड़ा इस वक़्त पर लहू तो है|
रक़ीबों से उलझते गुज़रतीं थीं महफिलें,
निक़ाह के बाद तेरे अब ज़रा सुकूँ तो है|
भूलना तेरा उसे मेरा सहारा बन गया,
रूमाल पुराना ही सही इसमें तेरी बू तो है|
पूछते हो शहर में दिल क्यूँ नहीं लगता,
भले ठंडा पड़ा इस वक़्त पर लहू तो है|
रक़ीबों से उलझते गुज़रतीं थीं महफिलें,
निक़ाह के बाद तेरे अब ज़रा सुकूँ तो है|
भूलना तेरा उसे मेरा सहारा बन गया,
रूमाल पुराना ही सही इसमें तेरी बू तो है|
पूछते हो शहर में दिल क्यूँ नहीं लगता,
गाँव के छप्पर में बया की चूँ चूँ तो है|
-ललित किशोर गौतम
-ललित किशोर गौतम
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