वो न जाने किस बात से घबरा रहे हैं|
'ना' करते पहले अब काहे कतरा रहे हैं|
सनम से मिलने की बेकरारी तो देखो,
अम्मा हैं साथ वो दुपट्टा लहरा रहे हैं|
हरियाणे के छोरे ऐसे ताड़ें हैं छोरी, जैसे
गोश्त के टुकड़े पे कुत्ते भैरा रहे हैं|
लगता है फिर चुनावी मौसम आ गया,
'ना' करते पहले अब काहे कतरा रहे हैं|
सनम से मिलने की बेकरारी तो देखो,
अम्मा हैं साथ वो दुपट्टा लहरा रहे हैं|
हरियाणे के छोरे ऐसे ताड़ें हैं छोरी, जैसे
गोश्त के टुकड़े पे कुत्ते भैरा रहे हैं|
लगता है फिर चुनावी मौसम आ गया,
दिल्ली के मेंढक तभी तो टर्रा रहे हैं|
इंसानी दिमाग और इंसानी ही जज़्बात हैं,
फिर क्यूँ गुलज़ार को पढ़के चकरा रहे हैं|
कई शायरों को पढ़ जब पढ़े दुष्यंत हमने,
लगा सैकड़ों शमाओं को जुगनू हरा रहे हैं|
पूछते हैं किस बात पे इतना उछलते हो तुम,
हमने कहा हरा हरा दिख रहा है तो गर्रा रहे हैं|
~ललित किशोर गौतम
इंसानी दिमाग और इंसानी ही जज़्बात हैं,
फिर क्यूँ गुलज़ार को पढ़के चकरा रहे हैं|
कई शायरों को पढ़ जब पढ़े दुष्यंत हमने,
लगा सैकड़ों शमाओं को जुगनू हरा रहे हैं|
पूछते हैं किस बात पे इतना उछलते हो तुम,
हमने कहा हरा हरा दिख रहा है तो गर्रा रहे हैं|
~ललित किशोर गौतम
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