Thursday, April 12, 2012

बेनाम ग़ज़ल

खुद को तकलीफ देकर धूप में जाना बंद हो|

 जो छत पर उनका बालों का सुखाना बंद हो|


अखीर वक़्त उनका फैसला मुल्तवी करना,

 "वालिद हैं" पुराना, उनका ये बहाना बंद हो


उस बुढ़िया का बेटा कल ही घर लौटा है,

ख़ुदा करे उसकी खाट का चरमराना बंद हो|


बड़े शहर की तालीम ने इन्हें तबाह कर दिया,

कहते हैं बाबा का, हुक्का गुड़गुडाना बंद हो|


~ललित किशोर गौतम

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