Friday, November 2, 2012

ख़ुद को दूसरों से बेहतर तुम उस दिन कहना, जब तुम लोगों की पनाहगार निगाह समझो|

चापलूसों से मिली तारीफ़ को आह समझो|
दुश्मनों की गाली को तुम इस्लाह समझो|

परीशां न हो तुम हमें इस जंगल में देखकर,
तफ़रीह करते हैं इसे हमारी सैरगाह समझो|

तालीम किसी से भी मिले लपककर जाना,
इसे बुलंदी पर पहुँचने की इक राह समझो|

ख़ुद को दूसरों से बेहतर तुम उस दिन कहना,
जब तुम लोगों की पनाहगार निगाह समझो|

शब गुज़ारता हूँ मैं बस पहलू बदल बदलकर,
इश्क़ में हूँ मेरी दुनिया अब तुम तबाह समझो|

गाज़ा, येरूशलम, कंधार मेरे ख़्वाबों में आते हैं,
हुक़ूमतों खौफ़ खाओ मजलूमों की कराह समझो|

~ललित किशोर गौतम

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