चापलूसों से मिली तारीफ़ को आह समझो|
दुश्मनों की गाली को तुम इस्लाह समझो|
परीशां न हो तुम हमें इस जंगल में देखकर,
तफ़रीह करते हैं इसे हमारी सैरगाह समझो|
तालीम किसी से भी मिले लपककर जाना,
इसे बुलंदी पर पहुँचने की इक राह समझो|
ख़ुद को दूसरों से बेहतर तुम उस दिन कहना,
जब तुम लोगों की पनाहगार निगाह समझो|
शब गुज़ारता हूँ मैं बस पहलू बदल बदलकर,
इश्क़ में हूँ मेरी दुनिया अब तुम तबाह समझो|
गाज़ा, येरूशलम, कंधार मेरे ख़्वाबों में आते हैं,
हुक़ूमतों खौफ़ खाओ मजलूमों की कराह समझो|
~ललित किशोर गौतम
दुश्मनों की गाली को तुम इस्लाह समझो|
परीशां न हो तुम हमें इस जंगल में देखकर,
तफ़रीह करते हैं इसे हमारी सैरगाह समझो|
तालीम किसी से भी मिले लपककर जाना,
इसे बुलंदी पर पहुँचने की इक राह समझो|
ख़ुद को दूसरों से बेहतर तुम उस दिन कहना,
जब तुम लोगों की पनाहगार निगाह समझो|
शब गुज़ारता हूँ मैं बस पहलू बदल बदलकर,
इश्क़ में हूँ मेरी दुनिया अब तुम तबाह समझो|
गाज़ा, येरूशलम, कंधार मेरे ख़्वाबों में आते हैं,
हुक़ूमतों खौफ़ खाओ मजलूमों की कराह समझो|
~ललित किशोर गौतम
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