Saturday, January 8, 2011

ग़ाफिल ग़लतियाँ

वो ग़र अलविदा कर मुझे जाने को कह देता/
फरिश्तों को भी मैं बाद में आने को कह देता/


ग़र मालूम होता हमें उनकी चारागरी का,
मैं अपने ज़ख्म उन्हें सहलाने को कह देता/


ख़ुदा कसम हमें इल्म न था उसके फ़ाकों का,
वरना मैं उस फ़कीर से खाने को कह देता/


पता होता अगर वो तुम्हारी कौम के नहीं,
मैं तुम्हे अपने घर में छुपाने को कह देता/


आह! कितनी मासूम थी वो बीती हुयी रात,
काश मैं चाँद से सूरज को मनाने को कह देता/


बदलता अगर मेरी मौत से सियासत का ढंग ,
दुआ में ख़ुदा से ये हस्ती मिटाने को कह देता/


लिखता हूँ मेरे दोस्त तुम्हे देखकर ग़ज़ल, संभालोगे
वरना इस दिल से ये काग़ज़ जलाने को कह देता/


~ललित किशोर गौतम

7 comments:

  1. चारागरी= healing power
    फ़ाका करना= भूखा रहना

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  2. ख़ुदा कसम हमें इल्म न था उसके फ़ाकों का,
    वरना मैं उस फ़कीर से खाने को कह देता/...

    waaaah!!! bahut badhiyaa..ye waali sach me bahut achchi hai..iss baar bhaav ke saath likhaai bhi badhiyaa hai :)

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  3. @vinayak itni khushi hame gunahon ka devta padhne ke baad ab huyi hai dhanyawad

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  4. sir heart touching lines....^_^

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