Thursday, January 6, 2011

"शरमदार हुकूमत"

(ये एक रचना है जो शायद ग़ज़ल नहीं है पर मेरे हृदय के उद्गारों को व्यक्त कर रही है, तो प्रार्थना है खुले दिल से पढ़े और सकारात्मक आलोचना का स्वागत है)

बात हो ग़र आम की बकवास जानी जाती है/
बकवास ख़ास लोगों की निर्विरोध मानी जाती है/

हलक फाड़कर चिल्लाये उनके जूँ तक नहीं रेंगी,
हुकूमत है ये इसी से तो पहचानी जाती है/

गुफ्तगू उजागर  क्या हुई पुरज़ोर हल्ला मच गया,
पर्दानशीं जुबानें और हैं पर वे पाक़ मानी जाती हैं/

सरेआम नंगे हैं खड़े और आसपास हैं पैंसठ के,
कहते बेहया ये हैं तारीफ सौ की मानी जाती हैं/


 कह दो उन खाकी नेकर और लम्बे डंडे वालों से,
बहादुर तुम नहीं बहादुरी श्यामा की मानी जाती है/
                                                                       

2 comments:

  1. ham apki gajal ko samajh hi nahi paye mitra..
    kya karen yar..sala dimag hi nahi chalta.par han jo bhi padhega,tareef jaroor karega.
    jitna bhi samajh me aya..that is awesome...

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  2. hamesha ki tarah - wah wah , shubhan allah.

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