Friday, October 1, 2010

"तथाकथित अमन"

सुई के गिरने पर जो आवाज़ सुनाई देती है/
यकसां वही गूँज मुझे, आज सुनाई देती है/
हो गया कायम अमन इसी गफ़लत में हैं लोग,
साज़िश है ये, मुझे तूफ़ान की आहट सुनाई देती है/
 खुश हैं आलमबरदार, फैसला अमन से निपट गया,
मुझे अपनी घाटी में पत्थरों की, गूंज सुनाई देती है/
हुक्मरान बहुत मसरूफ हैं कि, तमाशे का आगाज़ है,
और मुझे नेपथ्य में, इक खनखनाहट सुनाई देती है/
वो है कि आगे बढ़ रहा और गुफ़्तगू करनी है हमें,
ख़तरनाक मुझे ये अजगरी, फुंफकार सुनाई देती है/
ओ अखंड आर्यावर्त्त का, मीठा ख़्वाब देखने वालों,
मुझे चहुओर अलगाव की, आवाज़ सुनाई देती है/

4 comments:

  1. ...the acuteness of perception and subtlety of expression are really commendable....

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  2. waah waah launde (although i dint get it all)..........bytheway is it based on a particular event or just general.....

    waise let me continue jaisi meri aadat hai....

    muje aparipakva kavi k parikpakwa hone ki awaaz sunai deti hai......

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  3. @ अद्वितीय
    प्रशंसा हेतु इन भारी भरकम शब्दों का उपयोग करने हेतु धन्यवाद् और आशा करते हैं आप यूँ ही उत्साहवर्धन करते रहेंगे/

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  4. goood yaar lalit... shaandaar hai yaar... keep it up buddy!!...

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